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Showing posts from April, 2023

ग्रामीण गुर्जर समाज और लोक संस्कृति मे कर्नल बैंसला

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गुर्जर समाज की सांस्कृतिक परम्परायें बड़ी अनूठी और रोचक है. खासकर ग्रामीण समाज की. गुर्जर अपनी संस्कृति की उत्तरजीविता के लिए जाने जाते है. यानी ये लम्बे अरसे तक अपनी सामूहिक पहचान को जीवित रखने मे माहिर है. इस कौम की इस खासियत से मालूम चलता है कि ये प्रकृति से कबीलाई और सामूहिक रहने की आकांशी रही है. जो समूह इस तरह सांस्कृतिक एकजुटता को दिखाते है, उनकी मौलिक पहचान लम्बे समय तक अक्षुण रहती है. ग्रामीण गुर्जर समाज मे कर्नल बैंसला के लिए इसी तरह की सामूहिक भावना का परिचय मिलता है. प्रथमतः ग्रामीण महिलाये कर्नल बैंसला को महानायक की तरह देखती है. और उन्हें 'मोट्यार' के सम्बोधन से पुकार कर हिम्मती और निडर व्यक्तित्व के तौर पर उल्लेखित करती है. कर्नल बैंसला के निधन ( 31 मार्च 2022) के बाद उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर लोकभाषा मे गीत बुने जाने लगे. रागिनीयाँ गुंथी जाने लगी. उनकी पुण्यतिथि पर जिस तरह ग्राम स्तर पर रक्त दान कार्यक्रम हुए, पुण्यतिथि कार्यक्रम आयोजित हुए. इन सब बातो का राब्ता गुर्जर समाज की समूहगत पहचान और और अपने सांस्कृतिक नायक की स्मृतियों को अगली पीढ़ी तक स्थानानंतर करन

कर्नल बैंसला , सामाजिक उत्थान और परिवर्तन - पोखरमल गुर्जर

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- पोखरमल गुर्जर ( सेवानिवृत कार्यालय सहायक , मंत्रालय सेवा . ग्राम हर्ष , तहसील धोद सीकर राजस्थान  ) मान्यवर आज शायद  ही कोई परिवार होगा जो कर्नल साहब द्वारा समाज को दी सौगातों से अनभिज्ञ हो.  और 73 शहीदों का और कर्नल साहब का कृतिज्ञ ना हो. उनके द्वारा समाज को दिलवाये लाभों से वंचित हो, कोई फ्री स्कूल पढ़ाई, कोई साइकिल, कोई स्कूटी,कोई छात्रवर्ती, कोई प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई, कोई देवनारायण बोर्ड की योजनाओं, कोई कालीबाई भील योजनाओं, छात्रावासो, आवासीय स्कूल्स,कोई देवनारायण योजना में नामी निजी शिक्षण संस्थाओं, बीएड, एमएड, इंजिनीरिंग, एमबीए, एमबीबीएस बिना ट्यूशन फीस, छात्रवर्ती अलग यानी कि फ्री, प्रशासनिक सेवा प्री और फाइनल में.  आर्थिक सहयोग कर्मचारी से अधिकारी तक जनरल, ओबीसी व एमबीसी वर्ग में 5% आरक्षण के साथ शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और जनरल व एमबीसी में 5% आरक्षण के साथ नियुक्ति सबसे बड़ा समाज को लाभ तो यह हुआ कि युवाओ को अब यह लगने लगे गया कि यदि मैं भी तैयारी करू तो नॉकरी लग सकता हूं कुछ ही वर्षों में देश की आजादी से लेकर आरक्षण मिलने तक 70 साल तक जितने अधिकारी कर्मचारी नही थे उनसे कई

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ; साहस और लीडरशिप की दंतकथा - सतपाल गुर्जर

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 - सतपाल गुर्जर ( सतपाल जी कर्नल बैंसला के साथ बीस वर्षो से अधिक जुड़े रहे है ) कर्नल साहब की साहस की प्रसंशा का कारण भी यही है की एक साधारण से परिवार में जन्म और एक बहुत ही राजनीतिक और शिक्षा में पिछड़ा हुआ समाज जिसको अपनी ही सोती ही  नही, अपनी मस्ती में मस्त समाज को अपनी आखें खोलने पर मजबूर कर दिया और उसी समाज को अपनी आवाज उठाने के लिये खड़ा कर लिया ।  फिर एक एसा आंदोलन जो दुनिया ने देखा । उन व्यक्ति के नेतृत्व में समाज आंदोलन में कभी नही हारा हर आंदोलन में समाज के लिये कुछ ना कुछ लेकर ही हटा । आप ने जाट आंदोलन देखा उसमें भी लोग मारे गये और मिला कुछ नही । किसान आंदोलन भी देश ने देखा बहुत लोग मारे गये परन्तु हासिल कुछ नहीं हुआ.  गुर्जर आंदोलन में मारे गये लोगो को शहीद का दर्जा और पाँच पाँच लाख रुपए की आर्थिक सहायता और हर शहीद के परिवार से एक सरकारी नोकरी दिलाई ।  और शिक्षा की अलख जगाई और कोम को लड़ना सीखा दिया । कर्नल बैंसला को केवल गुर्जर समाज ही नहीं सभी समाज अपना नेता मानते थे ।  कर्नल बैंसला जी की जीवन की अनेकों एसी कहनिया है जहां से उनको आत्म बल मिलता था । वे ईश्वर  को तो मानते थे

राजस्थान में एमबीसी के रूप में गुर्जर आरक्षण - समयसिंह गुर्जर

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 समयसिंह गुर्जर                      कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में गुर्जरों को "आदिवासी वर्ग" में शामिल करने की अलख जगाने का श्रेय दिया जाता है,गुर्जर आंदोलन की रूपरेखा इसी मांग और मुद्दे को लेकर केंद्रित की गयी थी।  राजस्थान में आंधियां बहुत आती हैं शायद इसी से प्रेरणा लेकर कर्नल बैंसला के नेतृत्व में तुफानी आंदोलनों के दौर शुरू हुऐ थे,गुर्जरों के तुफानी आंदोलनों के सामने आंधियों के बंवडर भी फीके पड़ गए थे।लाखों-लाख की तादाद में गुर्जर जहां-तहां हूंकार भरते नजर आते थे,उसका कारण था कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का सशक्त नेतृत्व।  लंबे-चौड़े पड़ावों में मांग होती थी "आदिवासी वर्ग" में आरक्षण लेकर रहेंगे!इस मांग को लेकर गुर्जर सड़कों और रेलवे की पटरियों की तरफ निकल लिए थे,शेड्यूल ट्राइब कैटेगरी में शामिल करो ऐसे नारे गूंजते थे, और साथ ही "भगवान देवनारायण की जय"के नारों की गूंज से दिल्ली की सत्ता हिलोरें लेने लगी थी,राजस्थान की सत्ता हिचकोले खाने लगी थी। बैठकों के दौरे पर दौर चलते थे, पटरियों और सड़कों पर जमें आंदोलित गुर्जरों की एक ही मांग होती थी पटर

कर्नल बैंसला : जर्जर मनुष्यता की बस्ती के लोकदेवता

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गाँव - देहात की जर्जर और धूल - धूप से लड़ती बस्तियों की एक खास पहचान होती है. वहाँ बस्ति के बीच एक लोकदेवता का पूजा स्थल होता है. इस पूजा स्थल पर इन अभावग्रस्त लोगों की प्रार्थनाये, असुरक्षा, आशंकाये और छोटे छोटे सपने टंगे होते है. सदियों से न परिस्तिथियां बदलती है, न लोग बदलते है और न ही ये लोक आस्था के केंद्र बदलते है. यथास्तिथिवाद का इससे दयनीय उदाहरण और क्या होगा. कर्नल बैंसला ऐसे ही दीनहीन और जर्जर समाज मे जन्मे वो व्यक्ति थे. जिन्हे इन लोगो की पीड़ा और दैनिक कष्टपूर्ण दिनचर्या ने इन्ही के बीच एक लोकदेवता के तौर पर स्थापित कर दिया. फर्क यह था, कि बैंसला मिट्टी और पत्थर के बुत नहीं बने रहे. उन्होंने ताजिंदगी अपनी बस्ति के लोगो के हक और हुकूक की लड़ाई लड़ी. वे कमजोरी के खिलाफ मजबूती का ऐलान लगा कर खड़े हुए. उन्होंने अपने लोगों को ताकत, हिम्मत और जिद का पाठ पढ़ाया. पंद्रह सालों के भीतर ही उन्होंने गुमनाम चरवाहों को विश्व पटल पर ला खड़ा किया, और दुनिया की मिडिया को इनकी हिम्मत को देखने पर मजबूर किया. एक ऐसा समाज, जो सदियों से पशुपालन करता रहा है. जंगलो और नदी किनारो पर अस्तित्व की लड़ाई लड़ते

कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला : 'मेरी पगड़ी ही मेरा राजमुकुट, रेल की पटरियां ही मेरा सिंहासन' ~त्रिभुवन

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 ये गुर्जर आंदोलन के दिनों से कुछ पहले की बात है। मैं भारतीय जनता पार्टी की बीट देखता था और वह पगड़ीधारी कई बार इस पार्टी के ऑफ़िस में दिख जाता था। लेकिन एक दिन मैं उस अलग से लगने वाले इन्सान की तरफ़ खिंचा चला गया। वजह थी उनके सामने रखी एक किताब। यह पुस्तक नेपोलियन की बायोग्राफ़ी थी। फ़िलिप ड्वायर की लिखी "नेपोलियन : दॅ पाथ टु पावर'। एक पगड़ीधारी और लाठी वाला कद्दावर किसान सा दिखता आदमी और वह भी अंगरेज़ी की किताब पढ़े और धोती भी खांटी अंदाज़ में बांधे तो सहसा आकर्षण का विषय हो ही जाता है। यह जिज्ञासा आधुनिक परिवेश की मेरी या मेरे जैसे लोगों की उस कुंठा से उपजती है कि आख़िर कोई धोती-पगड़ी वाला ठेठ ग्रामीण किसान कैसे अंगरेज़ी की बेहतरीन पुस्तक पढ़ सकता है। उन्होंने बताया था कि युवा नेपोलियन उनका नायक है और वे उन्हें सेना के शुरुआती समय से ही पढ़ते रहे हैं।  कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला से यह पहली मुलाकात थी। उस संक्षिप्त सी मुलाकात में उन्होंने जो बताया, वह उनके मानीखेज़ व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ कहता था। प्रजा की, देश की, राजसत्ता और खूब सारी ऐसी ही बातें। खेत का खलिहान ही हमारा सिंहासन है,