कर्नल बैंसला : किंग ऑफ़ हार्टस

 बीते 12 सितंबर को कर्नल बैंसला की जयंती मनाई गयी है. क्या राजस्थान, क्या उत्तर प्रदेश, क्या गुजरात और क्या तैलंगाना ! विभिन्न राज्यों के गुर्जरो ने कर्नल बैंसला को एक स्वर मे याद किया. एक स्वर मे उनके व्यक्तित्व को अपनी श्रद्धा से सिंचित किया. 

देश के आला राजनेताओं, बुद्धिजीवी और सामाजिक एक्टिवस्ट समूह ने कर्नल बैंसला को सोशल मिडिया हेंडल्स के माध्यम से याद किया.

बेशक कर्नल बैंसला किंग ऑफ़ हर्ट है. उन्होंने समुदाय और क्षेत्र की सीमा लांघ कर लोगो के दिल मे जगह बनाई है.

भारत आंदोलनों का देश है. यहाँ आजादी से पहले ही आंदोलनों का एक सुदीर्घ इतिहास रहा है. सिद्धू कान्हू, बिरसा मुंडा से लेकर गाँधी ने इस देश मे व्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया है.

लेकिन आजादी के बाद आंदोलनों मे एक तरह का ठहराव पैदा हो गया. दक्षिण भारत के द्रविड़ आंदोलन या उत्तर भारत के जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों के साथ कोई बड़ा और व्यापक आंदोलन देश मे खड़ा नही हो पाया.

असल मे आंदोलन खड़ा करने के लिए जिस नेतृत्व क्षमता, नैतिक बल और परिश्रम की दरकार होती है. वह विरले लोगो मे ही पाया जाता है.

कर्नल बैंसला ने अपनी मुहीम को एक छोटे से गाँव मे रहकर बुना, और अपनी हिम्मत मेहनत और नीयत के बल पर उसे वैश्विक स्तर पर ला खड़ा किया.

उन्होंने अपने चारो तरफ लौह ढांचा खड़ा किया. लोग खड़े किए. विश्वास खड़ा किया. इस तरह का मोमेंटम शुरू किया कि जब ब्रेक आउट हुआ तो पंद्रह साल तक सत्ता और शक्ति सकते मे आ गए.

आज जब घर घर मे उनके लिए दीपक जल रहे है. गाँवो मे कर्नल बैंसला की मूर्तियां खड़ी हो रही है. सैकड़ो जगहों पर लोग उन्हें याद करने के लिए इकट्ठा हो रहे है. तो बरबस ही ध्यान आता है कि कर्नल बैंसला गुर्जर समाज के लिए कल्ट बन गए है. सामूहिक धर्म बन गए है.

समाज उनकी शिक्षाओं, कहानियों और प्रेरणाओ को दोहरा रहा है.

कर्नल बैंसला किंग ऑफ़ हार्टस बन चुके है. आने वाले वक्त मे उनके व्यक्तित्व की और भी सीमाएं खुलेगी. लोग अलग अलग तरह से उन्हें अपने बीच महसूस करेंगे.



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