Posts

कर्नल बैंसला : वो ताकत जिसे समझना अभी बाकी है .

Image
 कर्नल बैंसला : वो ताकत जिसे समझना अभी बाकी है .  निदा फाजली अपने एक शेर में कहते है कि , ''हर आदमी में होते है दस बीस आदमी , जिसको भी देखना कई बार देखना . दरिया के किनारे सितारे भी फूल भी , दरिया चढ़ा हो तो उस पार देखना ." किसी शख्स को एक ही नजर से नहीं देखा जा सकता है . हां नजर बदल बदल कर आप किसी शख्स के हर अक्स को देख सकते है . ये नजर की नहीं नजरिये की बात है .  कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला , जिन्हें सरकारों ने हमेशा एक समस्या के तौर पर ही देखा . न जाने कब ये शख्स दरिया बन कर बाढ़ ला दें , और सरकार अपनी तमाम मशीनरी को झोंक कर भी उसे रोक पाने में विवश नजर आये .  कर्नल बैंसला , जिन्हें गुर्जर समुदाय ने हमेशा अपने तारनहार के तौर पर देखा . हजारो साल की बेबसी और तकलीफ को समझने वाला और सरकारों को समझाने वाला शख्स उनकी कौम की रखवाली कर रहा था . जो जिसे चाहें जब चाहें उसी की भाषा में अपनी बात कह सकने की ताकत से लबरेज था . अंग्रेजी हो या हिंदी हो , या फिर ठेठ राजस्थानी भाषा हो . कर्नल बैंसला ने अपनी कौम की तकलीफों और न्याय के रास्ते को हर सम्भव भाषा में कहा .  कर्नल बैंसला , वो शख्स

कर्नल बैंसला के संदेश और सामाजिक परिवर्तन की राह

Image
 कर्नल बैंसला के सपनों का समाज हर दूरदर्शी नेता, समाज सुधारक और दूर दृष्टि रखने वाला व्यक्ति अपने आसपास के समाज के बारे में एक विजन का निर्माण करता है.  मसलन  राजा राममोहन राय ने यह सपना देखा कि समाज के भीतर से सती प्रथा का अंत हो. ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने इस विश्वास के साथ अपनी जिंदगी समाज सेवा को अर्पित की,  कि आने वाले वक्त में ज्ञान अपना प्रकाश फैलाएगा और बालिकाएं पढ़ लिखकर वर्चस्ववादी समाज में अपना स्थान ग्रहण करेंगी.   डॉ आंबेडकर समानता से भरे हुए समतावादी समाज की कल्पना करते थे. तो वही कार्ल मार्क्स ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां पर सर्वहारा वर्ग का शासन हो और पूंजीवादी व्यवस्था का अंत हो.  इन सारे महापुरुषों का संदर्भ लेते हुए कर्नल बैंसला के सपनों के समाज का जायजा लेना अति आवश्यक है. यूँ तो कर्नल बैंसला का अध्ययन, अनुभव और कार्य क्षेत्र बहुआयामी था. मैं 25 - 30 वर्ष तक सामाजिक न्याय का आंदोलन चलाते रहे. अपने समाज के मजलूम और मरहूम लोगों के लिए उन्होंने आरक्षण में अपनी हिस्सेदारी तय की. लेकिन इस समय जब वे सार्वजनिक मीटिंग में जाते थे. अपने लोगों से बात करते थे. और

कर्नल बैंसला : साधारण धूल से उठा हुआ ईश्वर का अद्भुत फूल

Image
सोचता हूं की क्या लिखा जाए उसे शख्स के बारे में जो दिखता तो बहुत साधारण था.  लेकिन उस साधारणता के पीछे विराट व्यक्तित्व था.  उस इंसान के घूमने फिरने,उठने बैठने, चलने और ठहरने में इतनी समान्यता मौजूद थी कि उससे हर कोई जुड़ जाता था.  गांव के बुजुर्ग उन्हें बड़ी आशा के साथ देखते थे. युवा उन्हें देखकर पहले से अधिक आत्मविश्वास और हिम्मत महसूस करते थे.  महिलाओं के लिए वह उनकी हकदारी का परचम था. तो स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां उन्हें ऐसी दिखती थी जैसे कोई उनके सपनों का फरमान लेकर आसमान से उतरा हो. और कह रहा हो, मेरी बेटियों जाओ अपने सपने पूरे करो.   कर्नल बैंसला. कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला इस नाम के आगे पीछे राजस्थान में सामाजिक न्याय की एक मौजू लड़ाई लड़ी गई. इस नाम के आगे पीछे परिवर्तन और विचारधारा का एक गठबंधन करवट लेता है. और पुराने प्रतिमानों को तोड़कर एक नई तरह की व्यवस्था बनाने के लिए जो कोशिश हुई है. वह कोशिश लाखो परिवारों के जीवन मे बदलाव का सेतु बन गयी.  सामाजिक परिवर्तन का जो  लेख लिखा गया है. इतिहास में ऐसे फेनोमेनल मोमेंट्स को युगांतरकारी परिवर्तन कहते हैं.  कर्नल बैंसला का स्वयं

दुःसाहसी व्यक्तित्व : कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला

Image
 दुःसाहसी व्यक्तित्व : कर्नल बैंसला - लोगो ने कहा, कर्नल बेटी को क्यों पढ़ा रहा है. बेटी को पढ़ाने का मतलब है. दूसरे के खेत मे पानी देना. कर्नल साहब ने इस स्टेटमेंट को ख़ारिज करते हुए अपनी बेटी को पढ़ाया, लिखाया और इस काबिल खडा किया कि आज बहिन जी भारत की सबसे मजबूत और शक्तिशाली कुर्सीयों मे से एक पर विराजमान है. - लोगो ने कहा, कर्नल क्यों आरक्षण के छत्ते को छेड़ रहे हो. आरक्षण का दायरा नही बढ़ सकता. कर्नल साहब ने उस छत्ते को इतनी बुरी तरह छेड़ा कि आज 50% से ऊपर निकल कर EWS आरक्षण भी हो गया और OBC आरक्षण भी लगातार बढ़ रहा है. - लोगो ने सोचा हमारी बेटियाँ शायद पढ़ लिख नही पायेगी. कर्नल साहब ने फिर से दुःसाहसी कदम उठा कर बेटियों के लिए स्कूटी, छात्रवृति, देवनारायण स्कूल्स की व्यवस्था करवाई. आज बेटियों के सपने पँख लगा कर उड़ रहे है. कर्नल बैंसला साहब ने अपनी गाड़ी के आगे Dauntless Bainsla लिखवाया था. Dauntless यानी, निडर, दुःसाहसी. इस शब्द को, साहस के विचार को उन्होंने ताजिंदगी जीया. और साबित किया.

कर्नल बैंसला : व्यक्तित्व निर्माण की पाठशाला

Image
 कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को आपने मीटिंग्स मे जोरदार भाषण करते हुए सुना होगा. उनके शब्द पानी की तरह बहते थे. आवाज मे एक खास किस्म की लरज थी, जिसे सुनकर युवाओं, बुजुर्गों और उपस्थित जनसमुदाय मे परिवर्तन की लहर उठ जाती थी. कर्नल बैंसला बालिकाओं और महिलाओ के लिए विशेष भाषण करते थे. वो जानते थे समाज की आधारशिला महिलाओ की प्रगति पर आलंबित है. हर किसी नेता को उनके जैसा होना चाहिये. दूर दृष्टि से पूर्ण, और विजनरी ! ये कर्नल बैंसला की सार्वजनिक उपस्थिति थी. लेकिन इसी के साथ साथ उनकी वैक्तिक उपस्थिति और इंटर परसनल कम्युनिकेशन पर भी चर्चा की जरूरत है. बहुत कम लोग जानते है कि कर्नल बैंसला व्यक्तिशः बहुत ही सरल,शांत, सहज और विवेकपूर्ण जीवन शैली को जीने वाले व्यक्तित्व थे. कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला प्रातः जल्दी उठ कर पढ़ने के अभ्यासी थे. बहुत बार वे सुबह तीन बजे उठ जाते. और पुस्तक पढ़ने लग जाते. उनके अध्ययन का विस्तार बहुआयामी था. साहित्य, फिक्शन, नॉन फिक्शन, इतिहास, संस्कृति की किताबों से लेकर ठेठ ग्रामीण साहित्य को बड़े चाव से पढ़ते थे. युवा पीढ़ी को खासकर ये आदत होनी चाहिये. व्यक्तित्व का निर्माण किता

कर्नल बैंसला : किंग ऑफ़ हार्टस

Image
 बीते 12 सितंबर को कर्नल बैंसला की जयंती मनाई गयी है. क्या राजस्थान, क्या उत्तर प्रदेश, क्या गुजरात और क्या तैलंगाना ! विभिन्न राज्यों के गुर्जरो ने कर्नल बैंसला को एक स्वर मे याद किया. एक स्वर मे उनके व्यक्तित्व को अपनी श्रद्धा से सिंचित किया.  देश के आला राजनेताओं, बुद्धिजीवी और सामाजिक एक्टिवस्ट समूह ने कर्नल बैंसला को सोशल मिडिया हेंडल्स के माध्यम से याद किया. बेशक कर्नल बैंसला किंग ऑफ़ हर्ट है. उन्होंने समुदाय और क्षेत्र की सीमा लांघ कर लोगो के दिल मे जगह बनाई है. भारत आंदोलनों का देश है. यहाँ आजादी से पहले ही आंदोलनों का एक सुदीर्घ इतिहास रहा है. सिद्धू कान्हू, बिरसा मुंडा से लेकर गाँधी ने इस देश मे व्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया है. लेकिन आजादी के बाद आंदोलनों मे एक तरह का ठहराव पैदा हो गया. दक्षिण भारत के द्रविड़ आंदोलन या उत्तर भारत के जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों के साथ कोई बड़ा और व्यापक आंदोलन देश मे खड़ा नही हो पाया. असल मे आंदोलन खड़ा करने के लिए जिस नेतृत्व क्षमता, नैतिक बल और परिश्रम की दरकार होती है. वह विरले लोगो मे ही पाया जाता है. कर्नल बैंसला ने अपनी मुहीम को

ग्रामीण गुर्जर समाज और लोक संस्कृति मे कर्नल बैंसला

Image
गुर्जर समाज की सांस्कृतिक परम्परायें बड़ी अनूठी और रोचक है. खासकर ग्रामीण समाज की. गुर्जर अपनी संस्कृति की उत्तरजीविता के लिए जाने जाते है. यानी ये लम्बे अरसे तक अपनी सामूहिक पहचान को जीवित रखने मे माहिर है. इस कौम की इस खासियत से मालूम चलता है कि ये प्रकृति से कबीलाई और सामूहिक रहने की आकांशी रही है. जो समूह इस तरह सांस्कृतिक एकजुटता को दिखाते है, उनकी मौलिक पहचान लम्बे समय तक अक्षुण रहती है. ग्रामीण गुर्जर समाज मे कर्नल बैंसला के लिए इसी तरह की सामूहिक भावना का परिचय मिलता है. प्रथमतः ग्रामीण महिलाये कर्नल बैंसला को महानायक की तरह देखती है. और उन्हें 'मोट्यार' के सम्बोधन से पुकार कर हिम्मती और निडर व्यक्तित्व के तौर पर उल्लेखित करती है. कर्नल बैंसला के निधन ( 31 मार्च 2022) के बाद उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर लोकभाषा मे गीत बुने जाने लगे. रागिनीयाँ गुंथी जाने लगी. उनकी पुण्यतिथि पर जिस तरह ग्राम स्तर पर रक्त दान कार्यक्रम हुए, पुण्यतिथि कार्यक्रम आयोजित हुए. इन सब बातो का राब्ता गुर्जर समाज की समूहगत पहचान और और अपने सांस्कृतिक नायक की स्मृतियों को अगली पीढ़ी तक स्थानानंतर करन